SARAN: जब  22 दिनों तक चीन के खिलाफ फायरिंग करते रहे थे छपरा के हरिहर सिंह, योद्धा की कहानी उन्हीं के जुबानी

SARAN: जब  22 दिनों तक चीन के खिलाफ फायरिंग करते रहे थे छपरा के हरिहर सिंह, योद्धा की कहानी उन्हीं के जुबानी

90 बसंत देख चुके छपरा के हरिहर सिंह ने 1950 में आर्मी ज्वाईन किया था और 1971 तक देश को सेवा देने के बाद सेवानिवृत हो गए.

छपरा. लद्दाख घाटी में चीनी सेना के साथ हुए संघर्ष (India-China Clash) के बाद से भारत और चीन के बीच तनाव जारी है. लोगों के मन में युद्ध की आशंका सता रही है तो वहीं कुछ लोग चीन (China) को मुंहतोड़ जवाब देने की बात कह रहे हैं. चीन के साथ वर्तमान हालात के बीच हम आपको बता रहे हैं 58 साल पहले के युद्धी की कहानी युद्ध में भाग ले चुके एक योद्धा की जुबानी.

छपरा के हरिहर सिंह ने लड़ी थी लड़ाई
दरअसल 1962 में जब भारत-चीन युद्ध हुआ था तब छपरा के हरिहर सिंह ने भी चीनी सैनिकों के साथ लड़ाई लड़ी थी. हरिहर सिंह के अनुसार उन्होंने खुद भी कई चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया था. एक बार फिर भारत-चीन युद्ध की खबर सुनकर हरिहर सिंह बेचैन दिख रहे हैं और उनके सामने बीती यादें रह-रह कर गुजर रही है. हरिहर सिंह बताते हैं कि दुश्मनों की गोलियां कान के छूकर गुजर रही थीं लेकिन कदम पीछे नहीं हट रहे थे.

दोनों बेटे भी आर्मी में
90 बसंत देख चुके हरिहर सिंह ने 1950 में आर्मी ज्वाईन किया था और 1971 तक देश को सेवा देने के बाद सेवानिवृत हो गए. मांझी प्रखंड के चांदपुरा गांव के रहने वाले हरिहर सिंह बताते हैं कि 25 अक्टूबर 1962 को सिक्किम के नाथुला बार्डर के गैलेप ला पोस्ट पर उनकी तैनाती थी. युद्ध 20 अक्टूबर से ही शुरू था और रेजिमेंट के कंपनी कमांडर कर्नल बीएस बाजवा के नेतृत्व में उन्होन भी मोर्चा संभाल रखा था. दोनों तरफ से लगातार गोलियां चल रही थीं लेकिन हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी भारत के जवानों ने चीनी सेनिकों को एक इंच भी आगे बढ़ने नहीं दिया था.

22 दिन तर करते रहे थे मुकाबला
सीओ बाजवा भी लगातार सैनिकों में जोश भर रहे थे. लड़ाई के 10 वें दिन उनके बगल से कई गोलियां निकल गईं. फायरिंग के बीच वो लोग लगातार 22 दिन तक चीनी सैनिकों के सामने टिके रहे और उनको आगे बढ़ने नहीं दिया. इसी बीच अरुणाचल प्रदेश में सैनिकों की संख्या कम होने पर पोस्ट से कुछ सैनिकों को अरुणाचल भेजा गया जिसमें हरिहर सिंह भी शामिल थे. हरिहर सिंह ने अपने सेवाकाल में ही दो पुत्रों को भी सेना की नौकरी में भेजा. दोनों पुत्र शत्रुघ्न सिंह और उमापति सिंह बिहार रेजिमेंट में सूबेदार हैं.

फिर से फड़कने लगी हैं भुजाएं
एक बार फिर युद्ध की खबर सुनकर हरिहर सिंह की भुजाएं फड़क रही हैं लेकिन हरिहर सिंह कहते हैं कि शरीर भले ही कमजोर हो गया है लेकिन हौसला वही है. हरिहर ने कहा कि सरकार मौका दे तो यह बूढा सीना भी सीमा पर ढाल बनकर खड़ा हो जाएगा.

 

सोर्स : न्यूज़ 18

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